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भारतीय साहित्य में लोकतंत्र : एक संवाद .

कोलकाता, 23 जून 2024 को भारतीय भाषा परिषद, सभागार में ‘भारतीय साहित्य में लोकतंत्र : एक संवाद’ विषय पर ‘भारतीय भाषा परिषद’ और ‘सदीनामा प्रकाशन’ के सहयोग से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत ‘परिषद’ की अध्यक्षा डॉ. कुसुम खेमानी के वक्तव्य से हुई। मौके पर उन्होंने कहा कि आज के समय में लोकतंत्र को बचाने के लिए ऐसे लोकतांत्रिक कार्यक्रमों की बहुत जरूरत है। इस संवाद कार्यक्रम में शहर के बहुभाषी बुद्धिजीवियों ने शिरकत की। इस कार्यक्रम में हिंदी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती, राजस्थानी, मैथिली, उड़िया, नेपाली और मगही ; दस भाषाओं के वक्ताओं ने अपनी बात रखी। तदुपरान्त श्रोताओं ने भी उनसे प्रश्न किये।
पंजाबी साहित्य पर बोलते हुए महेंद्र सिंह पुनिया ने कहा कि गुरुनानक और बुल्लेशाह से लेकर पाश तक, ‘पंजाबी भाषा’ में लोकतंत्र की लंबी परम्परा रही है। इस परंपरा को उन्होंने कवियों की कुछ कविताओं से उदाहरण देकर प्रमाणित भी किया। गुरदीप सिंह संघा ने पंजाबी में एक लोकतांत्रिक कविता सुनायी।
‘हिंदी’ पर अल्पना सिंह एवं जीतेंद्र जितांशु ने अपनी बात रखी।
अजय तिरहुतिया ने ‘मैथिली भाषा’ पर बोलते हुए ज्योतिश्वर ठाकुर और विद्यापति के साहित्य से लोकतंत्र के कई उदाहरण दिए। मैथिली के एक और विद्वान अशोक झा ने कहा कि मैथिल प्रदेश में मनाया जाने वाला छठ पर्व लोकतंत्र का एक अद्भुत उदाहरण है, क्योंकि बाँस काटने और उससे डोरी बनाने वाले लोग भले ही निम्न जाति के होते हैं, पर उनके हाथ का बना समान छठ करने वाले सभी जाति के लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है। उन्होंने विद्यापति और नागार्जुन की कविताओं के जिक्र के माध्यम से भी दिखलाया कि किस तरह आज भी मिथिलांचल में लोकतंत्र मौजूद है।
‘राजस्थानी’ पर राजस्थानी जुबान में ही अपने वक्तव्य रखते हुए हिंगलाज दान रतनू ने कहा कि राजस्थानी भाषा के अनेक रूप हैं, लेकिन उनके बीच अद्भुत लोकतंत्र आज भी स्थापित है।
सौरभ गुप्ता ने ‘ओड़िया भाषा’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यहाँ तो लोकतंत्र की इतनी सुंदर व्यवस्था है कि भगवान को भी बुखार लगता है और उनका इलाज भी कई दिनों तक चलता है।
कुमार सुशांत ने ‘मगही भाषा’ पर बोलते हुए कहा कि मगही में लोकतंत्र सदैव विद्यमान रहा है। उन्होंने मगही भाषा के कबीर मथुरा प्रसाद नवीन की कविताओं को सुनाते हुए कहा कि कवि को सूखा चना खाना पसंद है, लेकिन संघर्ष छोड़ना नहीं। यानी कवि क्रांति के लिए संघर्ष लोकतंत्र को बचाने के लिए ही करता है।
‘गुजराती भाषा’ पर बोलते हुए केयूर मजमुदार ने इसके कई आयाम खोले।
‘उर्दू’ पर अपनी बात रखते हुए डाॅ. शाहिद फिरोगी ने कहा कि उर्दू भाषा तो हमेशा से ही लोकतांत्रिक भाषा रही है। उन्होंने कुछ शेरों-शायरी का उदाहरण देकर अपनी बात को और पुष्ट किया।
‘नेपाली भाषा’ में नीमा निकष ने नेपाली लेखन पर लोकतांत्रिक चर्चा की ।
अंत में भारतीय भाषा परिषद की तरफ से अमृता चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापन और सदीनामा के मुख्य सम्पादक जीतेंद्र जितांशु ने बुद्धिजीवियों को कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए शुक्रिया कहा। इस अवसर पर शिवकुमार लोहिया अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष, प्रकाश किल्ला, प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन से जुड़े व्यक्तित्व, एजाज हसन, हलीम साबिर, शीन एजाज, परवेज, विनीत शर्मा, संपादक राजस्थान पत्रिका, विमला पोद्दार, जगमोहन सिंह खोखर, विनोद यादव, रंजीत भारती, सीताराम अग्रवाल, अजेंद्रनाथ त्रिवेदी, शकुन त्रिवेदी, सेराज खान बातिश, सुरेश शाॅ, संजीव गुरुंग, गोपाल भीत्रकोटि, रामायण धमला, देवेंदर कौर, दिव्या प्रसाद, अहमद रशीद, शंकर जालान, प्रदीप कुमार धानुक, सीमा भावसिहंका, उषा जैन, सरोज झुनझुनवाला, डॉ विभा द्विवेदी, राम नारायण झा, परमजीत पंडित, राज जायसवाल, मीनाक्षी सांगानेरिया, सुशीलकांति, मीनाक्षी दत्तगुप्त प्रभृति शहर के प्रतिष्ठित लोग उपस्थित रहे।