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बेलगाम सोशल मीडिया व्युत्क्रमानुपाती शिक्षकों की आदर्श छवि, सुरक्षा और गोपनीयता

सोशल मीडिया पर आए दिन शिक्षकों के कंटेंट चर्चा में बने रहते हैं किन्हीं पोस्ट्स पर तो उनके रचनात्मक शिक्षण कौशल व  अनूठे प्रयोग की प्रशंसा की जाती है व किन्हीं पोस्ट्स पर उनके अनापेक्षित आचरण की आलोचना भी होती है। हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कुछ शिक्षिकाओं पर विद्यार्थियों से जबरन रील पर लाइक, कॉमेंट्स कराने, रील में विद्यार्थियों की निजता का ध्यान न रखने, सोशल मीडिया की लत के कारण अध्यापन में अरुचि व अश्लील गानों पर डांस के आरोप लगे हैं। 

आज के सोशल मीडिया युग में शैक्षिक क्षेत्र में तस्वीर बदली है जिसके सकरात्मक व नकारात्मक दोनों पहलू उभरे हैं। 

08 अक्टूबर 2023 को प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया के एक समाचार लेख में बताया गया कि “कई अभिभावकों ने अपने बच्चों को यूपी के अमरोहा के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में भेजना बंद कर दिया है, क्योंकि उनका आरोप है कि चार महिला शिक्षक छात्रों को उनके सोशल मीडिया वीडियो को “लाइक और सब्सक्राइब” करने के लिए मजबूर कर रही थीं।” यह स्कूल पिछले कुछ दशकों से बिजनौर जिले के खुंगावली क्षेत्र में चल रहा है।

 20 मार्च 2024 को प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस के एक समाचार लेख में बताया गया कि “छात्रों के साथ ‘कजरा रे’ पर डांस करने वाली शिक्षिका का वायरल वीडियो ऑनलाइन बहस को जन्म देता है। वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित किया जा रहा है, जिससे उपयोगकर्ताओं के बीच बहस शुरू हो गई है। इंटरनेट के एक वर्ग ने वीडियो का आनंद लिया, जबकि अन्य ने कक्षा में आइटम नंबर पर नृत्य करने के लिए शिक्षिका की आलोचना की।”  

07 नवंबर 2023 को प्रकाशित हिंदुस्तान टाइम्स के एक समाचार लेख में बताया गया कि “एक शिक्षिका ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो साझा किया जिसमें बताया गया कि उसने एक छात्र के साथ कैसे व्यवहार किया जब उसने उसकी ऑनलाइन कक्षा के दौरान यौन रूप से अश्लील टिप्पणी की। उसने दूसरों के लिए प्रोत्साहन का एक नोट भी जोड़ा और कहा “प्रिय महिला शिक्षकों, तंग मत होइए।”” ये हालिया मीडिया रिपोर्ट एक शिक्षक की आदर्श छवि के लिए बदलते रुझान दिखाती हैं। 

 इन मीडिया रिपोर्टों के बावजूद, ऐसे कई शिक्षक हैं जो छात्रों को शिक्षित करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही गरीब और दूरदराज के क्षेत्रों के छात्रों की मदद कर रहे हैं। 23 नवंबर 2022 को प्रकाशित द इंडियन एक्सप्रेस के एक समाचार लेख में बताया गया कि “बिहार के शिक्षक की मजेदार शिक्षण पद्धति ने ऑनलाइन प्रशंसा अर्जित की। सोशल मीडिया पर साझा की गई एक क्लिप में बिहार के बांका की एक शिक्षिका अपने छात्रों के साथ खेलती और बातचीत करती दिखाई दे रही है।”

  26 अगस्त 2023 को प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया के एक समाचार लेख में बताया गया कि “शिक्षक का ‘गुड टच और बैड टच’ पर रचनात्मक पाठ सोशल मीडिया पर वायरल हो गया” 

इंस्टाग्राम पर ‘टीचर इन क्लासरूम स्ले आउटसाइड’, ‘डेट ए टीचर यू विल नेवर कंप्लेन’, ‘टीचर एंड मॉडल’ जैसे रील्स ट्रेंड कि भी भरमार है। अभिभावकों, विद्यार्थियों, सहकर्मियों तक उपलब्ध ऐंसे सार्वजनिक वीडियोज कंटेंट शिक्षकों की छवि और तालमेल प्रभावित कर सकते हैं। हालाँकि शिक्षकों/शिक्षिकाओं का निजी जीवन, उनकी अभिरुचि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी एक पहलू है लेकिन दूसरा पहलू यह भी है शिक्षक समाज को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं ऐंसे में उन्हें सामाजिक मूल्यों की आचार संहिता का ध्यान रखना भी आवश्यक हो जाता है। 

महाभारत के आदि पर्व में गुरु भक्त आरुणि के प्रसंग से लेकर सावित्री बाई फुले, गिजुभाई बधेका आदि शिक्षकों का समर्पण समाज में शिक्षक पेशे की गरिमा को दर्शाता है। शिक्षण एक बहुत ही सम्मानित पेशा है जिसके लिए समर्पण, जुनून और निरंतर सीखने की आवश्यकता होती है। बच्चों के दिमाग को ढालने और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने में शिक्षक बेहद महत्वपूर्ण हैं। वे अपनी विशेषज्ञता और ज्ञान से अपने विद्यार्थियों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। चाणक्य का कथन है “शिक्षक कभी भी साधारण नहीं हो सकता प्रलय और निर्माण दोनों उसकी गोद में पलते हैं।” 

ऐंसे में समाज निर्माता शिक्षक अपने पेशेवर मूल्यों, बदलते परिदृश्य में अपने निजी और पेशेवर जीवन के सार्वजनिक प्रभावों को लेकर कितने सजग हैं; शिक्षकों के सोशल मीडिया प्रयोग व उनके निजी सोशल मीडिया कंटेंट की सहकर्मियों, अभिभावकों व विद्यार्थियों तक  पहुँच के प्रभाव पर शिक्षकों के परिप्रेक्ष्य को जानना महत्वपूर्ण हो जाता है। 

सागर तहसील, मध्यप्रदेश के विद्यालयीन शिक्षकों के प्राथमिक सर्वेक्षण पर आधारित इस शोध में  93% शिक्षकों ने माना की अध्ययन अध्यापन हेतु सोशल मीडिया का प्रयोग विद्यार्थियों की अधिगम गतिविधियों में भागीदारी को बढ़ाता है । 53% शिक्षकों ने माना की निजी सोशल मीडिया एकाउंट पर पेशेवर पहचान उजागर नहीं करनी चाहिए। लगभग 98% शिक्षकों ने माना कि वे अपने सहकर्मियों के सोशल मीडिया एकाउंट पर प्रकाशित अध्ययन अध्यापन सामग्री, शिक्षण विधि से सीखते हैं व प्रेरणा लेते हैं ।  77% शिक्षकों ने माना कि सोशल मीडिया पर शिक्षक की निजी जिंदगी को सहकर्मियों के साथ साझा करने से उनके बीच के तालमेल पर असर पड़ सकता है ।  निजी जीवन की गतिविधियों के आधार पर सहकर्मियों के बर्ताव, आपकी छवि के प्रति धारणा में सकारात्मक एवं नकारात्मक किसी भी रूप में परिवर्तन हो सकते हैं।  89% शिक्षकों ने माना कि सोशल मीडिया पर अश्लील भाव भंगिमा, कृत्य, गानों, वॉइस आदि के साथ ट्रेंड फॉलो करते हुए वीडियो बनाने से शिक्षकों की आदर्श छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है । 31% शिक्षकों ने माना वो कक्षा के दौरान की गतिविधियाँ किसी रूप में सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं जिनमें से 35% शिक्षकों ने माना वो संबंधित व्यक्ति/ विद्यार्थी/ अभिभावक से अनुमति नहीं लेते हैं । गैर अनुमति साझाकरण चिंता का विषय है।  40% शिक्षक, विद्यार्थियों की प्रगति सोशल मीडिया पर साझा करते हैं । 99% शिक्षकों ने माना विद्यार्थियों की प्रतिभा को सोशल मीडिया पर शेयर करने से उन्हें वैश्विक मंच मिल सकता है।  65% शिक्षकों ने माना विद्यार्थियों के लिए सुलभ सोशल मीडिया  पर शिक्षक के निजी जीवन को विद्यार्थियों से साझा करने से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।  हालाँकि 35% शिक्षकों की चिंता इस आशय से भी है कि इन गतिविधियों का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है । 

सोशल मीडिया सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की जानकारी और राय साझा करने का केंद्र बन गया है। हालांकि इसके अपने फायदे हैं, लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तथ्य-जांच और विनियमन की कमी ने शैक्षणिक संसाधनों सहित गलत सूचनाओं के प्रसार को बढ़ावा दिया है। शिक्षक विद्यार्थियों के मूल्यों और धारणा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और झूठी या पक्षपाती जानकारी के प्रसार से विद्यार्थियों के नैतिक विकास पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। सोशल मीडिया तक लगातार पहुंच के साथ, शिक्षकों को अपने व्यक्तिगत और पेशेवर व्यक्तित्व के बीच अलगाव बनाए रखना चुनौतीपूर्ण लग सकता है। इससे गोपनीयता भंग की घटनाएँ और विद्यार्थियों और उनके परिवारों के साथ तालमेल में गड़बड़ी संभावित है। एक और चिंता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विनियमन और नियंत्रण की कमी है; यह उन्हें अनुचित सामग्री और साइबरबुलिंग के संपर्क में ला सकता है, जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, ऑनलाइन उपस्थिति बनाए रखने का दबाव और नकारात्मक प्रतिक्रिया का डर भी शिक्षकों में तनाव और कार्यभार में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है। सोशल मीडिया के लिए सामग्री तैयार करने और लगातार अपडेट रहने आवश्यकता शिक्षकों के समय और ऊर्जा को क्षीण कर सकती है जो वे पाठ योजना निर्माण और निर्देशन में लगा सकते हैं।

सोशल मीडिया त्वरित संतुष्टि की संस्कृति को भी बढ़ावा देता है, जहां उपयोगकर्ता लगातार लाइक और शेयर के माध्यम से स्वीकरण की तलाश में रहते हैं। यह शिक्षकों को मूल्यवान और सटीक जानकारी प्रदान करने के बजाय जुड़ाव बढ़ाने वाली सामग्री बनाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करके शिक्षण मूल्यों को प्रभावित कर सकता है।  इसके अलावा, सोशल मीडिया मेट्रिक्स की प्रतिस्पर्धी प्रकृति शीर्ष पर पहुंचने की दौड़ को जन्म दे सकती है, जहां शिक्षक प्रासंगिक बने रहने और फॉलोअर्स हासिल करने के लिए साहित्यिक चोरी या पुरानी और गलत जानकारी का उपयोग करने जैसी अनैतिक प्रथाओं का सहारा ले सकते हैं। सोशल मीडिया पर एक और मुद्दा गुणवत्ता नियंत्रण की कमी है।

 सूचना तक पहुंच और साझा करने में आसानी के साथ, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा की जाने वाली शैक्षिक सामग्री की वैधता और विश्वसनीयता के बारे में चिंता बढ़ रही है। कई शिक्षकों के पास, उचित प्रशिक्षण या मार्गदर्शन के बिना, सोशल मीडिया पर मौजूद जानकारी की विश्वसनीयता और सटीकता का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक कौशल नहीं हैं। इसके परिणामस्वरूप पक्षपातपूर्ण या गलत जानकारी का अनजाने में साझाकरण हो सकता है। इन मुद्दों को हल करने के संभावित समाधान हैं –  शिक्षकों के लिए डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

इसमें शिक्षकों को सोशल मीडिया पर साझा की गई जानकारी की विश्वसनीयता का मूल्यांकन करने के तरीके के बारे में शिक्षित करना और उन्हें अपने छात्रों के साथ कोई भी सामग्री साझा करने से पहले तथ्य-जांच करने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल है। यह न केवल शिक्षकों के बीच आलोचनात्मक सोच कौशल को बढ़ावा देगा बल्कि गलत सूचना के प्रसार को रोकने में भी मदद करेगा। 

इसके अतिरिक्त, डिजिटल युग में मूल्यों और नैतिकता को पढ़ाने के महत्व को उजागर करने के लिए जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। इन अभियानों को शिक्षकों और छात्रों दोनों पर लक्षित किया जा सकता है, जो उनके शिक्षण में  नैतिक मानकों को बनाए रखने में शिक्षकों की जिम्मेदारियों पर जोर देते हैं। इस तरह की पहल जिम्मेदार सोशल मीडिया उपयोग की अवधारणा और समाज पर इसके प्रभाव को भी बढ़ावा दे सकती है। 

इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी शैक्षिक सामग्री के लिए सख्त नीतियों और नियमों को लागू करके जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसमें तथ्य-जांच तंत्र, विश्वसनीय स्रोतों को बढ़ावा देना और उन खातों को दंडित करना शामिल हो सकता है जो गलत या पक्षपाती जानकारी को बढ़ावा देते हैं।  ये उपाय न केवल सटीक और गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक सामग्री को बढ़ावा देने में मदद करेंगे, बल्कि शिक्षकों को भ्रामक या अनैतिक सामग्री साझा करने के लिए जवाबदेह भी बनाएंगे।

शिक्षकों को युवा दिमाग का संवर्धक माना जाता है। शिक्षकों को सोशल मीडिया पर जो कुछ भी पोस्ट करना है, उसके प्रति सतर्क और सावधान रहना चाहिए, क्योंकि उनकी ऑनलाइन उपस्थिति छात्रों, अभिभावकों और स्कूल प्रशासकों द्वारा आसानी से देखी जा सकती है। शिक्षकों के लिए पेशेवर लहजे को बनाए रखना और किसी भी विवाद से बचने के लिए विवादास्पद विषयों से बचना आवश्यक है।

अन्य उपायों में विद्यार्थियों, अभिभावकों और सहकर्मियों की शिक्षकों के निजी सोशल मीडिया एकाउंट तक पहुँच को सीमित किया जाना, सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर सामग्री प्रसारित करते हुए सामाजिक – सांस्कृतिक मानकों का ध्यान रखना, निजी सोशल मीडिया अकाउंट पर पेशेवर पहचान प्रदर्शित न करना शामिल हैं। 

 डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण, जागरूकता अभियान और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सख्त नियमों जैसे उपायों को लागू करके, हम समस्याओं को कम करने की दिशा में काम कर सकते हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की शिक्षा में जिम्मेदारी से सोशल मीडिया के इस्तेमाल को बढ़ावा देना और ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और सटीकता के मूल्यों को बनाए रखना आवश्यक है।

– नवीन कुमार जैन

एम. ए. (भूगोल), बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

पता – ओम नगर कॉलोनी, वार्ड नं.-10, 

बड़ामलहरा, जिला- छतरपुर, म. प्र., पिन-471311

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