Culture

ऐसी बानी बोलिए, जमकर झगड़ा होय

                      बी.एल .आच्छा

   चुनावी सभा में खाली कुर्सियाँ देखकर उम्मीदवार जी दुखी हो गये। हथेली में दूसरे हाथ की मुट्ठी ठोकते हुए कहे जा रहे थे-"क्या करूँ ? कैसे भीड़ बटोरूं?" उदास चेहरे और एकान्त को देखकर पेड़ से लटका बेताल उनकी लोकतंत्रिया पीठ पर आकर चिपक गया। उम्मीदवार जी भौंचक | मुस्कुराते  हुए बेताल बोला -"तुम्हारे उदास चेहरे को देखकर मन भर आया | मैं तुमसे न सवाल पूछूंगा, न सिर काटने की शर्त । इस बार सवाल तुम करो, उत्तर मै दूँगा।"     
      उम्मीदवार ने पूछा - "ऐसा क्या बोलूं कि वोटर मेरा कायल हो जाए !" बेताल ने कहा-" अरे यह तो पहले से ही कहा हुआ है- ऐसी बिनी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को सीतल करे आपहुं सीतल होय।" उम्मीदवार जी को खुन्नाट हुई। बोले-  इतनी ठंडी बानी से तो वोटर की उंगली पर बर्फ ही जम जाएगी। ठंडी फिल्म, ठंडे बोल | बॉक्स ऑफिस और बेलट बॉक्स दोनों जम जाएँगे| अगरचे वोटर शीतल हुआ तो अपुन तो माइनस टेंपरेचर में।"बेताल ने कहा-" समझदार हो गये हो। जमाने की रंगत में पगे हुए। इस जमाने के शब्दों की टकसाल में उल्टा-पुल्टा, गड्डमगड्डा लट्ठमलठ्ठा ही बजते हैं। तो सुनो, इस शीतल वाणी को  प्रेशर कूकर या माइक्रोवेव डाल दो - " ऐसी बानी बोलिए जमकर झगड़ा होय |"
  उम्मीदवार की बांछें खिल गयी । बोला 'मन तो मेरा भी होता है कि अपनी जबान निकालकर सिर पर लगा दूँ।" बेताल ने कहा-'अरे तुम तो शब्दों को ऐसा फेंको जैसे भाड़ में सिककर चना फटकर उछल जाता है। फिर  बोलकर चुप कर जाओ | कांव -कांव  चलती रहेगी। चल छैंया छैंया की तरह चल चैनलिया- चैनलिया फर्राटे भरते हुए। अखबार- अखबार सुर्ख़ियाँ बन जाएंगी। "
      "मगर कभी ये आड़े- तिरछे शब्द पत्थर की तरह मुझ पर आने लगे तो | नोटिस आने लगे तो ?" उम्मीदवार ने कहा। बेताल बोला - औरों को गर्माते अपने को गर्म करो।  अभिव्यक्ति की आजादी में अपने रंग भरो ।फिर मी कुछ रह जाए तो माफी दर्ज करो।" उम्मीदवार ने कहा "वाह बेताल ! कितनी माकूल सलाह | इन दिनों विडियो, ऑडियो, म्यूजिक और नारे भी जबदस्त-चलन में हैं। क्या करूँ ?" बेताल बोला- हाँ, जमाने को समझो। तुम्हारी जबान से बड़ी ऑनलाइन जबान है। एक बार जबान हिला दो, फिर वह लॉरी में लगे माइक ही तरह बोलती- दिखती रहेगी। तुम भी गाने बनवाओ-" का.. बा.. ।"उत्तर में " का.. का... बा"। दर्जनों विडियो चलवाओ। फिर भी न बने तो राग मुफ्तिया को सप्तम सुर में बजवाओ।"
उम्मीदवार ने पूछा-"ये राग मुफ्तिया क्या है?" बेताल हंस पड़ा।बोला- "एजेण्डा बनाओ, जो मुफ्त में दिया जा सकता है। फिर देखो, मुफ्त लाइनिया होइ| अब उनको  मिसाइल- सुपर मिसाइल मत गिनाओ।न गलवान घाटी।  शब्दोस मिसाइल से ही इतना धुआँ फैल जाए कि सामने वाला धुआँ- धुआं हो जाए। शब्दवेधी बाण तन्नाट।गीतों की कजरिया वोट की लय साधने लगे।नारे खनकने लगें।तुम तो पूंछ पर पैर रख दो। बैठे हुए जबानी घोड़े दौड़ने लगेंगे।छुकछुकिया जबानों की बकरोली खुदबखुद पस्त हो जाएगी।"बेताल ने फिर कहा-"अभी इतना ही। लोकतंत्र का नया चेहरा आएगा,तो नये पाठ समझने आ जाना।"और बेताल फिर डाल पर लटक गया।

बी एल आच्छा
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प्रेस विज्ञप्ति- कोलकाता पुस्तक मेला
पुस्तकें मनुष्यता की गंगोत्री हैं

कोलकाता पुस्तक मेले में राष्ट्रीय संवाद
कोलकाता पुस्तक मेला के प्रेस कॉर्नर में राष्ट्रीय संवाद
5 मार्च,कोलकाता। भारतीय ज्ञानपीठ,वाणी प्रकाशन समूह और भारतीय भाषा परिषद की ओर से कोलकाता पुस्तक मेले के प्रेस कॉर्नर में आयोजित राष्ट्रीय संवाद में कहा गया कि पुस्तक संस्कृति की रक्षा एक राष्ट्रीय कर्तव्य है। पुस्तकें मनुष्यता की गंगोत्री हैं। इनका पांच सौ सालों का गौरवपूर्ण इतिहास है। अपने स्वागत वक्तव्य में भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने कहा कि पुस्तक संस्कृति ही मनुष्यता का मार्ग दिखाती हैं। कोलकाता पुस्तक मेले में हिंदी की उपस्थिति बढ़ाई जानी चाहिए।
वाणी प्रकाशन की ओर से अदिति माहेश्वरी ने कहा कि कोरोना महामारी के बाद भारत में कोलकाता पुस्तक मेले ने पुस्तक संस्कृति की यात्रा फिर से शुरू की है। रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि पुस्तक संस्कृति एक नये संकट से गुजर रही है। उससे उबरने के लिए नयी परिकल्पनाओं की आवश्यकता है। पाठकों की रुचि के अनुसार उनको पुस्तकें सुलभ होनी चाहिए।
भोजपुरी और हिंदी के प्रख्यात कथाकार मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि नालंदा में पुस्तकें जलाईं गयी फिर भी पुस्तकों की परंपरा खत्म नहीं हुई। पुस्तकें पढ़ते समय हम ठहरकर कुछ सोच सकते हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया यह अवसर नहीं देता। परिषद के उपाध्यक्ष एवं आई.लीड के संस्थापक प्रदीप चोपड़ा ने कहा कि पुस्तक प्रेम संस्कार से मिलता है और इस संस्कार को विकसित करने की जरूरत है। रांची विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. रवि भूषण ने कहा कि इस समय शब्द पर आक्रमण हो रहे हैं। पुस्तक संस्कृति ही इससे रक्षा कर सकती है। परिषद के निदेशक डॉ शंभुनाथ ने कहा कि पुस्तकें पढ़ना स्वाधीन होना है। जब तक मनुष्यों के मन में प्रश्न है पुस्तक संस्कृति बची रहेगी। आज मनुष्य बौद्धिक प्राणी की जगह इलेक्ट्रॉनिक प्राणी बनता जा रहा है। राष्ट्रीय संवाद की अध्यक्षता करते हुए पटना से आए कवि अरुण कमल ने कहा कि पुस्तक संस्कृति की रक्षा का अर्थ है अच्छी किताबों को पढ़ना। यह दुश्मनी की नहीं प्रेम की संस्कृति है। इस अवसर पर डॉ सुनील कुमार शर्मा की पुस्तक ‘हद या अनहद ‘ सहित मंगलेश डबराल, मोहनदास नैमिशराय एवं घनश्यामदास बिड़ला आदि का लोकार्पण हुआ। पुस्तक मेले में राष्ट्रीय संवाद के संयोजक डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि पुस्तक संस्कृति हमें ज्ञान,विवेक और आदमियत से जोड़ने का संस्कार देती है। धन्यवाद ज्ञापन अदिति माहेश्वरी ने दिया।