First soveIrgien king of PUNJAB

दिल्ली मेट्रो का स्टेशन है मंडी हाउस। मंडी हाउस हिमाचल रियासत का दिल्ली केंद्र हुआ करता था। नेशनल  स्कूल ऑफ ड्रामा की छत से मंडी हाउस स्टेशन की तरफ देखेंगे तो मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन के ऊपर एक नई मूर्ति लग गई है, यह मूर्ति बंदा सिंह बहादुर की है। जिसके नीचे लिखा हुआ है “फर्स्ट सोवर्जिन किंग ऑफ पंजाब”। आजादी के कई साल बाद  राज्यों के दोबारा बनने से पहले दिल्ली की सीमा अविभाजित पंजाब से जुड़ती थी। बंदा सिंह बहादुर पर लिखने से ज्यादा जरूरी है कि हम पंजाब की बात करें। पंजाब में जब जब अकाली दल सत्ता से बाहर रहता है तो बड़े-बड़े आंदोलन शुरू होते हैं, हमारा यह संपादकीय हलफनामे के तौर पर पढ़ा जाए कि यह  हमारी राय नहीं। मगर हम देखें तो पाते हैं कि पंजाब के ज्यादा बड़े आंदोलनों में अकाली दल का कोई सीधा संपर्क नहीं। पंजाब का आम आदमी जो  पंजाब के बाहर नहीं गया, वह पंजाब के बारे में क्या सोचता है? जो पंजाब से बाहर देश के दूसरे जगह पर बसा है, वह क्या सोचता है? और, विदेशों में जो पंजाबी गया, वह क्या सोचता है? यह तीनों बातें एक नहीं।

इस बात का जवाब तो कोई समाजशास्त्री ही दे सकता है कि जो पंजाब से बाहर नहीं गया वह क्या सोचता है? देश के दूसरे भागों में रहने वाले पंजाब के लोग क्या सोचते हैं? देश के बाहर जो कुछ भी सोचा जाता है वह घूम फिर कर हमारे देश में आ जाता है। पंजाब और पंजाबियत एक चीज है और आज सिख धर्म पंजाब का बड़ा धर्म है? सिख पंथ के सिख धर्म में बदलने की प्रक्रिया *में* बहुत  कुछ बदला है। सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी के *संदर्भ में भाई प्रह्लाद जी और भाई नंदलाल जी ने सिख रहतनामों में लिखा है*;

आज्ञा भई अकाल की, तबे चलायो पंथ।

सब  सिक्खन कों हुकम है, गुरू मानियो ग्रंथ ।।

पंजाब के सामाजिक ढांचे में परिवार का सबसे बड़ा बेटा पंथ का होता था, उसके केश नहीं काटे जाते थे। उस केशधारी के सारे बेटे केशधारी नहीं होते थे। यह क्रम जो टूटा पंजाबियत  को झटका लगा। पंथ के शुद्धिकरण की नाम पर आगे जो स्वीकार कर लिया गया वो इतिहास है। देश के विभाजन से पहले *पंजाब* पंजाबीभाषी सूबे का केंद्र था। विभाजन के बाद जो पाकिस्तान को मिला। इसके साथ ही देश की आजादी से आजादी के दस्तावेज भी लाहौर के किले में सुरक्षित किए गए। बंगाल में जिस तरह से बंगाली जाति के दो बड़े केंद्र थे ढाका और कलकत्ता, दोनों बड़े विश्वविद्यालय थे। देश विभाजन के बाद उसके दो हिस्से हो गए , 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद ही बंगाली भाषा *की* विश्व पहचान *बनी*।

पंजाब की राजनीति और सामाजिकता में बहुत ज्यादा फर्क नहीं। इनको साहित्य से कोई अलग नहीं कर सकता। पंजाबी साहित्य का बड़ा हिस्सा आज भी विभाजन की कहानियों और लेखों और रचनात्मकता से भरा पड़ा है। जिस समय  खालिस्तानी आंदोलन चल रहा था, उस समय भी साहित्य में “फूलों का साथ” जैसी कृतियां हिंदी में अनूदित हो रही *थीं*। कोई भी चीज किसी से अछूती नहीं है इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हम अपने आसपास की आवाजों को ध्यान से सुनें।

कुछ दिन पहले हावड़ा स्टेशन से अपने  घर तक पहुंचने में, टैक्सी  ड्राइवर का यह दर्द उभरा कि राजीव गांधी के हत्यारों को माफी दे दी गई लेकिन दूसरे को नहीं। अति उत्साही लोग इन्हीं बातों को आधार बनाते हैं और लोगों  को गुमराह करते हैं। पंजाब में बहुत सारे डेरे हैं ,बहुत सारी गद्दियां हैं।

हमें पंजाब की संवेदनशीलता को समझना पड़ेगा। इस बात को उससे भी ज्यादा के हमारे किसी भी कदम से पंजाबियत का ताना-बाना ना हिले।

आमीन

जीतेंद्र जितांशु