UKRAIN WAR

रूस यूक्रेन युद्ध को एक साल से ऊपर हो गया।  साल बीतने के बाद भी लड़ाई जारी है । इस युद्ध में दोनों पक्षों के  सैनिक लोग मारे जा रहे हैं। ऐसे समय में रूस और यूक्रेन युद्ध को समझने के लिए हिंदी में लिखी किताबें  पाठक पढ़ना चाह रहे। लेकिन  हमारे साहित्यकारों ने इस पर कलम कम चलाई 

। विश्व पुस्तक मेले में भी यूक्रेन पर ज्यादा किताबें बिकती नहीं दिखीं। ऐसे समय में कोलकाता के मानव प्रकाशन में आमने-सामने की  श्रृंखला में पहली पुस्तक प्रकाशित की है । नाम है ‘ रूस यूक्रेन युद्ध 2022 ‘ लेखक हैं डॉ.अवधेश प्रसाद सिंह । यह पुस्तक उस जगह को भरने की कोशिश है जहां हमारा पाठक इस विषय को जानना चाहता है ।

 पुस्तक का  19 मार्च को लोकार्पण हुआ है।  इस पुस्तक के आमुख में  युद्ध पर पड़ताल की रूपरेखा लिखी है।  पुस्तक के लेखक  ने करीब-करीब सारी चीजों को समेटने की कोशिश की है। हमें अपने पाठकों से जो साझा करना  है कि   वहां हो क्या रहा है ? हम  सिर्फ इतना ही जानते थे कि रूस से अलग हुए गणराज्यों में यूक्रेन भी था। पुस्तक को पढ़ कर समझ पाएंगे कि  इस युद्ध का दुनियां पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?  दुनियां किस तरफ जा रही है ? रूस ने युद्ध तो यह सोचकर शुरू किया गया था कि कुछ घंटो ,दिनों या महीनों में जीत लिया जाएगा ,लेकिन ऐसा हो नहीं सका। टाइम मैगजीन में छपे एक इंटरव्यू में ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति  इनासियो लूला  डी सिलवा ने  इस युद्ध पर जो  शंका व्यक्त की वह सच साबित संख्या  हो रही है। वे  रूस के राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध के लिए  उतना ही जिम्मेदार मानते  हैं जितना  यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की को। युद्ध के लिए केवल पुतिन दोषी नहीं है ।अमेरिका और यूरोप  को साफ कहना चाहिए था  कि वे यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं करेंगे , युद्ध नहीं होता। पश्चिमी  नेताओं की आलोचना करते हुए लूला ने  कहा है कि वे यूक्रेन  को हथियार देकर शांति की बजाय युद्ध करा रहे हैं।  उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति के संबंध में कहा कि वे एक तमाशे का हिस्सा हैं। सुबह , दोपहर और रात टेलीविजन पर होते हैं । यूके, जर्मन, फ्रांसीसी संसद में होते हैं। ….. उन्हें बातचीत की मेज पर होना चाहिए. “

विश्व में एक खास तरह का नेरेटिव चल रहा है, जिसमें यूक्रेन युद्ध में चीन सहित भारत को विलेन के रूप में दिखाया जा रहा है। द न्यूयॉर्क टाइम्स में हाल में एक लेख में छपा है कि रूस के युद्ध में चीन और भारत में एक बड़े  वित्तपोषक की भूमिका निभा रहे हैं । उनकी सोच बहुत ही कपटपूर्ण है क्योंकि इस युद्ध में भारत का रुख तटस्थतावाला है । भारत मानता है कि हथियारों की आपूर्ति करने की बजाय यूक्रेन समस्या के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति का रास्ता अपनाना चाहिए । पोप और लुल्ला का रुख भारत के करीब है । भारत इस पक्ष में है कि रूस और यूक्रेन के बीच एक रचनात्मक बातचीत के माध्यम से सभी समस्याओं का हल निकले । भारत  इस मामले  में गंभीर है और निरंतर राजनयिक  प्रयासों की वकालत करता रहा है। फ्रांस, तुर्की देशों के राष्ट्रपति पुतिन से मिलकर इस लड़ाई को बंद करने का आह्वान कर रहे हैं पर अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है । परिणामतः इस युद्ध के कारण एक तरफ यूक्रेन धधक रहा है तो दूसरी तरफ यूरोप दूसरी तरफ, दुनियां भोजन  सहित अनेक तरह की वस्तुओं की कीमतों में अभूतपूर्व की कीमत चुका रही है । युद्ध का रुकना मानवता के हित में है ।

 डॉ. अवधेश सिंह अपनी बात इस तरह खत्म करते हैं कि तमाम नैरेटिव को दरकिनार कर रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए विश्व स्तर के प्रयास की जरूरत है। शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना और यूक्रेन में विकेंद्रीकरण की संघीय आंतरिक राजनीति को प्रमुखता देना बाजिव है। साथ ही न तो रूस ना ही पश्चिमी देशों को यूक्रेन के  राजनीतिक निर्णय में हस्तक्षेप करना चाहिए।पश्चिमी देशों द्वारा आगे बढ़कर दोनों पक्षों को फिर से बातचीत शुरू करने और अपनी प्रतिबद्धताओं  पर खरा उतरने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए और  रूस को पूर्वी यूक्रेन में हस्तक्षेप बंद करना चाहिए।

आमीन

जीतेंद्र जीतांशु 

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