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ओलम भारत में पढ़ाई करने की शुरुआत को कहते हैं। वह पीढ़ी जो लकड़ी की पट्टी पर कट्टम कुट्टम करके पढ़ाई कर शुरुआत करती थी, वह सबसे पहले ओलम सीखती  थी । उर्दू में काम शुरू करने को बिस्मिल्लाह और पढ़ाई खत्म करने वाली किताब को जदीद उर्दू रीडर कहते हैं। जिसका हिंदी तर्जुमा यानी अनुवाद होगा “उर्दू की आखिरी किताब*। इस   नाम की किताब भी है,  जिसके मूल लेखक हैं इब्ने इंशा और इस किताब का उर्दू से हिंदी में लिप्यंतरण एवं संपादन किया है अब्दुल बिस्मिल्लाह ने ।  यह किताब उर्दू व्यंग्य अर्थात उर्दू  तेज निगारी   की अच्छी किताब है 

यह किताब पाठ्यपुस्तक शैली में लिखी गई है यानी कि किताब कोर्स की तरह लिखी गई हैं।

व्यंग्य की किताब होते हुए भी इसमें भूगोल और इतिहास , व्याकरण , गणित व विज्ञान आदि सभी विषयों पर व्यंगात्मक पाठ तथा प्रश्नावली या दी गई हैं । हम इस किताब के बहाने इब्ने इंशा पर बात कर रहे हैं।इन्होंने  

 जिन विषयों को उठाया है वह हम सबको बेहद छूते हैं । मिसाल के लिए देश का विभाजन , हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अवधारणा ,कायदे आजम जिन्नाह ,मुस्लिम बादशाहों का भारत पर शासन ,  आजादी का छद्म , शिक्षा व्यवस्था , थोथी नैतिकता , भ्रष्ट राजनीति आदि। किताब के बारे में यह  जिक्र  जरूरी है कि यह किताब दिल्ली के राजकमल प्रकाशन ने छापी है । मैं यहां दो तीन उदाहरण जरूर देना चाहूंगा।

 एक

बैरम खान को हज कराना 

बैरमखान अकबर का अतालीक (बनाने वाला) था। उसी ने उसकी परिवेश की थी और तख्त दिलाया था । अकबर ने तख्त पर बैठने के बाद सारे अख्तियारात (अधिकार) कब्जे में कर लिए तो सोचा इस मुहसिन (उपकारी) के एहसानात का बदला चुकाना  चाहिए ।

चुनांचे बैरम खान को बुलाया और कहा ,

“खान  बाबा !अब आप जाइए हज कर आइए। ” किसी को हज पर भेजना, वह जाना चाहे या ना चाहे, बड़ी नेकी का काम है। अकबर ने और भी कई लोगों को उनकी ना ना की परवाह ना करते  हुए हज और जियारत पर भेजा , लेकिन खुद  नागुजीर वजूहात (बहुत जरूरी ) और चंद मसरूफियात की वजह से कभी न जा सका 

 बैरम खान हज को जाते हुए रास्ते में कत्ल हो गया ,लेकिन यह उसका जाती मामला था ।तारीखों (इतिहासों ) में लिखा है कि अकबर को  उसके मरने की खबर हुई तो बहुत रंज हुआ । जरूर हुआ होगा।

एस पाकिस्तान पर लिखते हैं जो उस समय का है जब भारत विभाजित हुआ ही था और आज की समय में पाकिस्तान की स्थिति को मिला लिया जाए

मिला लिया जाए

                दो 

          पाकिस्तान

 हद्दे अरबा : पाकिस्तान के मशरिक में सीटो है मगरिब में  संटू , शुमाल (उत्तर) में ताशकंद और जुनूब(दक्षिण) में पानी। यानी जायेएमफर (भागने) किसी तरफ नहीं है ।

कपाकिस्तान के दो हिस्से हैं . मशरिकी (पूर्वी)पाकिस्तान और मगरिबी  (पश्चिमी )पाकिस्तान । ये एक दूसरे से बड़े फासले पर है । कितने बड़े फासले पर , इसका अंदाज आज हो रहा है। दोनों का अपना अपना हद्दे अरबा भी है। 

मगरिबी पाकिस्तान के शुमाल में पंजाब, जूनुब में  सिंध, मशरिक में हिंदुस्तान और मगरिब में सरहद और बलूचिस्तान हैं। मियां ! पाकिस्तान खुद कहां वाका(स्थित) है? और वाका है भी कि नहीं ; इस पर आजकल रिसर्च हो रही है।

मशरिकी पाकिस्तान के चारों तरफ आजकल मशरीकी पाकिस्तान ही है 

तीन

            भारत 

ये भारत है। गांधी जी यहीं पैदा हुए थे।

। यहां उनकी बड़ी इज्जत होती थी।  उनको महात्मा कहते थे ।चुनांचे मार कर उनको यही दफन कर दिया और समाधि बना दी। दूसरे मुल्कों के लोग बड़े लोग आते हैं और इस पर फूल चढ़ाते हैं ।अगर गांधीजी  मारे नही जाते तो पूरे हिंदुस्तान में अकीदतमंदों (श्रद्धालुओं )के लिए फूल चढ़ाने के लिए कोई जगह न थी।   यह मसला हमारे पाकिस्तानवालों के लिए भी था ।  हमें कायदे आजम (जिन्ना साहब ) का ममनून (अहसानमंद) होना चाहिए कि खुद ही मर गए और सेफारती(पर्यटक) नुमाइंदों की फूल चढ़ाने की एक जगह पैदा कर दी वरना शायद हमें भी उन्हें मारना पड़ता ।

भारत का मुकद्दस ( पवित्र)जानवर गाय है। भारती उसी का दूध पीते हैं उसी के गोबर से चौका लीपते हैं । लेकिन आदमी को भारत में मुकद्दस जानवर नहीं गिना जाता।

बात हम दुआ करते हैं खत्म करते हैं

   चार 

           एक दुआ

“या अल्लाह ! खाने को  रोटी दे। पहनने को कपड़े दे। रहने को मकान दे। इज्जत और आसूदगी की जिंदगी दे। “

मियां यह भी कोई मांगने की चीजे है ? कुछ और मांगा  करो । “

बाबा जी ! आप क्या मांगते हैं ?

 मैं ? मैं ये  चीजें  नहीं मानता।  मैं तो कहता हूं , अल्लाह मियां मियां ईमान दे,  नेक अमल की तौफीक दे ।” 

” बाबाजी ,आप ठीक दुआ मांगते हैं। इंसान वही चीज मांगता है जो उसके पास नही होती।”

आमीन

जीतेंद्र जितांशु